Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyana Gosvāmī Mahāraja  •  100th Anniversary

Ajay Kumar

India, Bhabua, Bihar

।। हरे कृष्ण ।।

ॐ अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।
चक्षुरुंमिलितम येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

हे कृष्ण करुणा सिंधो दीनबन्धु जगतपते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तुते।।

तप्त कान्ञ्चन गौरांगी राधे वृदावनेश्वरी।
वृषभानु सुते देवी प्रणमामि हरि प्रिये।।

जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद
श्री अद्वैत गदाधर श्री वासादी गौर भक्त वृन्द।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

श्रील भक्तिवेदांत नारायण गोस्वामी महाराज जी की शताब्दी व्यास पूजा के अवसर पर मेरी पुष्पांजली

वैसे तो मैं गुरु जी को पुष्पांजली लिखने के योग्य नही हूँ। लेकिन व्हाट्सप्प ग्रुप "श्रील गुरुदेव हरिकथा" के एक मैसेज ने मुझे यह पुष्पांजली लिखने के लिये प्रेरित किया। और मैं इस अवसर का लाभ भी उठाना चाहता हूँ।

पुष्पांजली लिखने के पूर्व मैं अपना परिचय देना चाहता हूँः-

आप वैष्णव लोगो के व्हाट्सएप ग्रुप में 8-9 महीना पहले लॉक डाउन में मैं जुड़ा था। इससे पहले मैं श्रीसुंदरगोपाल प्रभु जी का लेक्चर youtube पर सुनता था। काफी प्रभावशाली लेक्चर होता है, इनके लेक्चर से मेरे आध्यात्मिक जीवन में काफी प्रभाव पड़ा। श्रीकृष्ण के विषय में बहुत कुछ जानने को मिला । काफी नई नई बाते जानने को मिली, जो कि समाज मे इसके विपरीत ही लोग जानते है | मैं उस समय समझ गया कि इनके गुरु जी भी काफी प्रभावशाली होंगे।क्योकि मेरे यहां एक कहावत प्रचलित है—'गाँव के खलिहान के पुआल से पता चलता है कि गाँव कितना समृद्ध है'। और फिर बाद में मै सुंदर गोपाल प्रभु जी के सम्पर्क में आया और उन्होंने मुझे कई ग्रुप से जोड़ दिया और उनमें से एक ग्रुप श्रील "गुरुदेव हरिकथा" भी है। जिसमें केवल श्रील गुरुजी का लेक्चर आता हैं । गुरु जी का लेक्चर सुनते सुनते मैं उनका हो गया। मुझे अब गुरु जी अनजान नही लगते । कुछ तो सम्बंध होगा, तभी तो मैं यह पुष्पांजली लिखने के लिए प्रेरित हुआ। और कोई भी किसी के विषय मे तभी लिख सकता है जब वो दोनों लोग आपस मे मिले हो या "जुड़े हो"। मैं मिला तो नही हूँ, लेकिन मैं जुड़ जरूर गया हूँ।

पुष्पांजली

हमारे गुरु जी बहुत ही सुन्दर, बहुत ही सरल और बहुत ही बुद्धिमान हैं।

हमारे श्रील गुरु जी शास्त्रों और पुराणों के कठिन से कठिन शब्दों की व्याख्या ऐसे किये है कि लगता ही नही है कि ये कठिन है। जैसे लगता है कि पहले से जानता हूँ। मैं तो बहुत सारे शब्दों का नाम भी नही सुना था जैसे : रागनुगा भक्ति ,परकीया भाव इत्यादी। ये ऐसे शब्द है जिनका अर्थ मैं सात जन्मों में भी नही जान पाता । लेकिन गुरु जी के लेक्चर ने मुझे सब आसानी से समझा दिया । यह वही कर सकते है जो उस लीला में प्रवेश किये हो, जो उसका स्वाद चखे हो, यह किसी और के वश की बात नही है।

मैं एक लेख के माध्यम से गुरु जी को पुष्पांजली अर्पित कर रहा हूँ। यहाँ मैं भगवान श्री कृष्ण के कार्यकलाप और स्वंय श्री कृष्ण भगवान को समझने के लिये भौतिक जगत के एक काल्पनिक घटनाक्रम के माध्यम से समझने की कोशिश कर रहा हूँ। हालांकि भगवान जी को समझने के लिये भौतिक जगत से तुलना नही किया जा सकता है। लेकिन मेरे पास इसके अलावा कोई और विकल्प नही है।

मान लीजिये किसी जिला के जिलापदाधिकारी है,जिनका नाम कृष्ण आनंद है। जब ये दफ्तर जाते हैं, तो इनका पहनने वाला कपड़ा बदल जाता है। कोट, पैंट ,टाई ,बैग होता है और इनके जाने के लिये स्पेशल वाहन होता है। जहाँ ऐश्वर्य बहुत बढ़ जाता है, वहाँ लोग और उनके निचले अधिकारीगण उनके मूल नाम से नही पुकारते है। सबलोग उनको सर - सर कहते है । दफ्तर में इनका व्यवहार आदेशात्मक होता है। (आज हमारे समाज मे 90℅ लोग श्री कृष्ण के इसी रूप को जानते हैं। आप लोगों के लेक्चर सुनने से पहले मैं भी यही जानता था)

और जब ये अपने घर आते है, तो दफ्तर के लिए धारण किए गये सभी वस्तुओं को त्याग कर अपने मूल (मधुर) स्वरूप में आ जाते है। यहाँ इनका इंतजार इनके कई मित्र और सखा लोग करते है। उस घर मे सखा और दोस्तों की पहुँच अतिथि गृह तक होती हैं।यहाँ जिलापदाधिकारी अपने दफ्तर वाले पद या ओहदा में नही होते है। यहाँ इनके दोस्त सब इनके मधुर नामों से सम्बोधन करते है। इनका कोई भी कार्य इनके प्रिय सखा बहुत आसानी से कर देते है। और उनको यह सब करते हुए बहुत आनंद आता है। (यानी सख्य रस की पहुच भगवान जी के निज धाम के अतिथी गृह तक ही होती है)

और फिर जब ये अपने मित्रों से बातचीत करने के बाद खाने के लिए जाते है यहाँ इनकी माँ इंतजार करती है । और इनको अपने हाथों से गर्म गर्म प्रसाद बनाकर खिलाती है (वात्सल्य रस में भी बहुत सारी मधुर लीला करते हैैंं)

तत्तपश्चात श्रीकृष्ण निकुंज में अपनी प्रियतमा श्रीमति राधा रानी के साथ विहार करते है। यहाँ श्री कृष्ण सर्वोच्च आनंद पाते है, यहाँ प्रेम का सर्वोच्च आदान प्रदान होता है, माधुर्य रस की अनंत लीलाये होती है । यहाँ श्रीमति राधा रानी की अनेक सखियां और दासियाँ होती हैं। उन्हीं सखियों में एक हमारे गुरू जी भी हैं। हमारे गुरु जी पर राधा रानी की विशेष कृपा है। तभी तो उनको माधुर्य रस के भाव के बारे में इतनी गहराई से जानकारी है। यह रस ऐसा है कि आँखों के इशारे से सब समझना पड़ता है। जो श्री कृष्ण के माधुर्य रस में पूर्णतः डूब जाते है वही भगवान जी के बारे में प्रवचन दे सकते है।

लेकिन मुझे एक बात बराबर खटकती थी कि भगवान जी से द्वेष करने वाले भी भगवान जी के धाम जाते है, मुझे कुछ अच्छा नही लगता था। लेकिन इसका उत्तर बहुत दिनों बाद भक्तिरसामृत सिन्धु पढने के बाद मिला । कंस जैसे द्वेषी भी भगवान के धाम जाते है, लेकिन भगवान जी के महल के बाहर ही स्थित रहता है।

और अंत मे :-

● हमारे गुरु जी श्रीमति राधारानी के प्रिय परिकरों में से एक हैं ।

● गुरु जी का मैं चित्रपट देखा हूँ, इनके आँखों मे अलग तरह की चमक है जो सबको आकर्षित करती हैं।

● हमारे गुरु जी बहुत सरल स्वभाव के है। क्योंकि वो शुद्ध भक्त है ।जो व्यक्ति बनावटी होता है वह बहुत कपटी होता है ऐसे व्यक्ति के पास कोई आसानी से पहुंच नही सकता है।

हरे कृष्ण।

श्री गुरु और गौरांग का सेवा अभिलाषी।

अजय कुमार