Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyana Gosvāmī Mahāraja  •  100th Anniversary

Acharya Krishna Chandra Chaturvedi

India, Mathura

आविर्भाव-शतवार्षिकी-वन्दन

आचार्य-चैत्यवापुषा स्वगतिं व्यनक्ति – इस भागवातीय(११/२९/६) पद्यसे यह सुस्पष्ट है कि स्वयं परब्रह्म ही धर्मका सर्वोत्कृष्ट आचरण प्रस्तुत करनेके लिए आचार्य स्वरूपमें प्रकट होते हैं। इसी शृंखलामें श्रीमन्मध्वाचार्यजी द्वारा प्रवर्तित एवं तदन्तर श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा सम्वर्धित माध्व-गौड़ीय-परम्परा अद्यावधि(आज तक) अविच्छिन्न विद्यमान है।

इसी परम्पराके एक प्रतिष्ठित आचार्य श्रील भक्तिवेदान्त नारायण महाराजश्री अपने यशोविग्रहसे सर्वदा विद्यमान विभूति हैं। भक्ति एवं ज्ञान दोनों ही भगवत्प्राप्तिके निष्कण्टक मार्ग हैं – यह श्रुति-पुराण-सिद्ध सिद्धान्त है। दोनों ही एक दूसरेके पूरक हैं; इसलिए पञ्चरात्रमें महात्मय-ज्ञान-विशिष्ट-सर्वतोऽधिक स्नेहको ही भक्ति कहा है। जहाँ एक ओर भगवद्गीता(८/२२) में “पुरुषः स परः पार्थ भक्तया लभ्यस्त्वनन्यया” कहकर पूर्ण पुरुषोत्तमकी संप्राप्ति अनन्य-भक्तिसे बतायी गयी है, वहीं अन्यत्र ‘वेदान्त-विज्ञान-सुनिश्चितार्थाः’ इत्यादि उपनिषद्(मुण्डक ३/२/६)-वाक्योंसे वेदान्त विज्ञान द्वारा ही वास्तव वस्तु ब्रह्म-तत्त्वका अनुभवात्मक परिज्ञान सम्भव है।

पूज्य महाराजजीने अपनी अन्वर्थनामात्मकता (अपने नामके अर्थ) को सिद्ध करते हुए जहाँ अपने दिव्य जीवनमें श्रीचैतन्य-महाप्रभुजी द्वारा निर्दिष्ट प्रेमा-भक्तिके सिद्धान्तोंका परिपालन करते हुए देश-विदेशमें अनेक जीवोंको भक्ति-भावनासे परिपूर्ण किया है, वहीं वेदान्त-सिद्धान्तके सम्पोषणार्थ स्वाध्याय-सत्संग, विद्वज्जनोंके निरन्तर सम्पर्क, एवं अचिन्त्यभेदाभेद-सिद्धान्तसे समन्वित गोविन्द-भाष्य सहित वेदान्तसूत्रके हिन्दी संस्करणका सम्पादनकर आपने गौड़ीय-वेदान्त-सिद्धान्तोंके प्रचार-प्रसारमें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस प्रकार भक्ति और वेदान्त दोनों ही मार्गोंसे आपने ‘नारायण’ की ओर प्रगति करनेका दिव्य-मार्ग अपने आचरण एवं सदुपदेशोंसे निरन्तर प्रदर्शित किया है। आपके जीवन और सदुपदेशोंसे निरन्तर अध्यात्म-पथ-पथिकोंको सत्प्रेरणा मिलती रहे – आपकी आविर्भाव-शतवार्षिकीके अवसरपर ऐसी शुभेच्छाके साथ भगवान्‌की नित्यलीलामें विराजित आपश्रीको कोटि-कोटि प्रणाम निवेदित करता हूँ।

आचार्य डा. कृष्ण-चन्द्र चतुर्वेदी (मथुरा)

(अनन्त श्रीविभूषित श्रीमद्विष्णुस्वामि-मतानुयायिश्रीगोपाल वैष्णवपीठाधीश्वर श्री१००८ श्रीविठ्ठलेशजी महाराजके परम कृपापात्र)

सेवानिवृत्त प्रोफेसर-
राष्ट्रीय-संस्कृत-संस्थान
मानित-विश्वविद्यालय, जयपुर