Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyana Gosvāmī Mahāraja  •  100th Anniversary

Sripad B.S. Govinda Maharaja

India, Radha Kunda

श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज

श्रीलनारायणगोस्वामिदशकम्

(श्रीमद्भक्तिसर्वस्व गोविन्द महाराज विरचित)

कनकमधुरवर्णं दीर्घदेहं यतीन्द्रं
रुणितवसनाढ्यं मन्दहास्याङ्कवक्त्रम्।
नियमितजपगानं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥१॥

जो कनक(स्वर्ण)के समान मधुर कान्तियुक्त हैं, दीर्घदेहवाले यतिराज हैं, अरुण वस्त्रधारी हैं, जिनका मुखमण्डल सर्वदा मृदुमन्द–हास्यसे युक्त हैं, जो नियमित इष्टमन्त्रादिके जप और कीर्तनमें निमग्न हैं—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥१॥

त्रिनिगमिकुलचन्द्रं शिक्षिताध्यात्मविद्यं
त्रिपुरभजननिष्ठं क्षान्तचित्तं कृतज्ञम्।
त्रुटितभवविषादं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥२॥

जो त्रिवेदीकुलके चन्द्रमास्वरूप हैं, अध्यात्मविद्यामें सुशिक्षित एवं सुप्रतिष्ठित हैं, नवद्वीप–वृन्दावन–नीलाचल नामक त्रिपुरके भजनमें निष्ठावान् हैं, क्षमाशील हैं, कृतज्ञ–श्रेष्ठ हैं, संसारके विषादसे मुक्त हैं—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥२॥

दिशि दिशि हरिगाथाकीर्त्तनानन्दमादं
मधुरमृदुलभाषं दर्शितेष्टार्थवादम्।
महदनुभविचेष्टं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥३॥

चारों दिशाओंको (देश–विदेशोंमें) कीर्तनानन्दरूप महोत्सवसे पूर्ण करनेवाले, मधुर मृदुल(कोमल) भाषण–परायण, शास्त्रोंके मर्मार्थोंसे युक्त गौड़ीय विचारोंको प्रदर्शित करनेवाले, महान् अनुभूतियोंसे सम्पन्न—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥३॥

निवेदितमिह भक्त्या स्वेष्टदेवेषु दास्यं
वितरितमिह शुद्धं भक्तदासेषु वात्स्यम्।
प्रणयितवरसख्यं वै सतीर्थेषु नित्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥४॥

जिन्होंने इष्टदेवादिमें भक्तिपूर्वक दास्यका निवेदन किया है, भक्तसेवकोंको शुद्ध–वात्सल्यका वितरण किया है, प्रणयी सतीर्थोंके साथ सख्य भावना(मि़त्रता)से युक्त है—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥४॥

रचितबहुप्रबन्धं मुद्रितानेकग्रन्थं
प्रकटितमठकेन्द्रं काशिताराध्यसेवाम्।
प्रचलितगुरुदास्यं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥५॥

जिन्होंने बहुत–से भक्तिमय प्रबन्धोंकी रचना की है, अनेक गोस्वामिग्रन्थोंका मुद्रण किया है, श्रीचैतन्यवाणीके प्रचारकेन्द्रस्वरूप बहुत–से मठ–मन्दिरोंका प्रकाशकर आराध्यकी सेवा प्रकाशित की है तथा जो अपने गुरुदेवके दासस्वरूपमें उनकी सेवाके लिए सर्वत्र विचरण करते हैं—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥५॥

विलुलितमपवादं रौपदर्शनेन सर्वं
विमलपरमहंसं प्राज्ञवंशावतंसम्।
परमगुरुमतिष्ठं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥६॥

श्रील रूपगोस्वामीके सिद्धान्तोंके द्वारा समस्त अपवादोंके खण्डनकारी, प्राप्तस्वरूप विमल परमहंस, प्राज्ञकुलके उत्तराधिकारी, परमगुरु श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती प्रभुपादके आदर्शमें प्रतिनिष्ठित श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥६॥

भुवि वितरितमुच्चैः कृष्णचैतन्यवादं
समुदितरतिरूपाराध्यराधानुदास्यम्।
विदलितकलिकल्पं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥७॥

जिन्होंने जगत्‌में श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभुके मतका प्रचुर प्रचार किया है, जिन्होंने रतिमञ्जरी और रूपमञ्जरीकी आराध्या श्रीराधिकाके दास्यका भूयसी(प्रचुररूपमें) गान किया है, जिन्होंने कलिके मतवादका विशेषरूपसे दलन किया है—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥७॥

भजनविधिरसज्ञं कृष्णमाधुर्यलुब्धं
विदितनिगमवेद्यं रागरङ्गं मनोज्ञम्।
मधुरितजनचित्तं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥८॥

जो विविध भजनविधि और राग–रसके विषयमें अभिज्ञ हैं, कृष्णमाधुर्यके पानमें लुब्ध हैं, निगमके ज्ञातव्य विषयोंसे अवगत हैं, राग–रङ्गमें मनोज्ञ हैं, भक्तिरसके द्वारा लोगोंके चित्तको मधुर करनेमें निपुण हैं—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥८॥

रमण इति सुनाम्ना राधिकामञ्जरीषु
प्रथितममलशीलं कुञ्जसेवानुरक्तम्।
प्रणयिविनयिपूज्यं श्रील नारायणाख्यं
गुरुवरमिह वन्दे जातशताब्दिपूर्त्तौ॥९॥

‘रमण मञ्जरी’—इस सुन्दर नामसे राधिकाकी मञ्जरियोंमें जो प्रसिद्ध हैं, अमल शील चरित्रवान् हैं, कुञ्जसेवामें अनुरक्त हैं, प्रणयी और विनयी व्यक्तियोंके पूज्य हैं—उन श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गुरुवरकी आविर्भाव शतवर्षपूर्तिके अवसर पर मैं उनकी वन्दना करता हूँ॥९॥

रमणरचितकुञ्जे सेव्यराधाविनोदे
तदुदितवरपर्वे जाताशाताब्दिपूर्त्तौ।
दशककुसुमदिव्यार्घ्येण दीनैकबन्धुः
कृपयतु नतदासं मङ्गलं सन्तनोतु॥१०॥

सेवाकुञ्जके निकट सेव्य श्रीराधाविनोदविहारी विराजित श्रीरमण मञ्जरीके रचित कुञ्जस्वरूप श्रीरूप–सनातन गौड़ीय मठमें उनकी आविर्भाव शतवर्षपूर्ति महोत्सवमें विरचित इस दिव्य दशक–पुष्प–अर्घ्यके द्वारा दीनजनैक–बन्धु श्रील नारायण गोस्वामी महाराज इस प्रणत श्रीभक्तिसर्वस्व गोविन्द दास पर कृपा वितरण करते हुए मङ्गल विधान करें॥१०॥

श्रीमद्भक्तिसर्वस्व गोविन्द महाराज