Śrī Śrīmad Bhaktivedānta Nārāyana Gosvāmī Mahāraja  •  100th Anniversary

Sri Ramesh Baba

India, Barsana

मैं नित्यलीलाप्रविष्ट श्रीभक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराजजीको उनकी शतवार्षिक-आविर्भाव-तिथिपर कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ। सद्गुरु व सत्साधु जगत्‌में बहुत ही दुर्लभ हैं, स्वयं शिवजीने पार्वतीजीसे कहा है—

गुरवो बहव: सन्ति शिष्य वित्तापहारका:।
दुर्लभ: सद्गुरुर्देवी शिष्य सन्तापहारक:॥

कलियुगमें शिष्यकी सम्पत्ति हरण करनेवाले बहुतसे गुरु हैं, किन्तु शिष्यके सन्ताप नाश करनेवाले सद्गुरु दुर्लभ हैं।

सद्गुरु एवं महापुरुषोंके जो लक्षण श्रीमद्भागवतमें बताये गये हैं, वे सभी श्रीनारायण महाराजजीमें विद्यमान थे।

जब व्रजमें पर्वतोंका खनन हो रहा था, उस समय श्रीरमेशबाबाजी महाराजने व्रज-धरोहरकी रक्षाके लिये धरना दिया था। जैसे ही श्रील नारायण महाराजको इस बातका पता चला, तो वह अपने शिष्यों और परिकरोंको लेकर आये और अपना पूर्ण समर्थन व्यक्तकर आन्दोलनको सशक्त बनाया। ऐसे महापुरुषोंके भजन-बल और अथाह प्रयासका परिणाम है कि आज व्रज-भूमिके दिव्य पर्वत खनन माफियाओंसे मुक्त हो गये और भगवान्‌की अनेक लीला-स्थलियाँ नष्ट होनेसे बच गयीं।

श्रील महाराजजीने देश-विदेशमें जाकर अपनी मधुर वाणीसे व्रजकी महिमाका वर्णनकर असंख्य लोगोंको शुद्ध व्रज-भक्तिमें लगाया। वे प्रतिवर्ष देशी-विदेशी भक्तोंको लेकर चौरासी-कोस व्रजमण्डलकी परिक्रमा करते थे। पहलेके वर्षोंमें वे परिक्रमा कालमें भक्तोंके साथ प्राय: दस दिन बरसानाके मोदीभवनमें ठहरते थे। दिनमें विभिन्न लीला-स्थलियोंके दर्शन करते थे और संध्यामें राधाजीकी महिमाके विषयमें प्रवचन करते थे। इनका श्रीचैतन्यचरितामृत ग्रन्थके आधार पर राधातत्त्वका वर्णन बहुत ही विलक्षण होता था। जब भी महाराजजी परिक्रमा पार्टीके साथ गह्वरवनकी परिक्रमा लगाते थे, उस समय हमको परिक्रमा पार्टीकी प्रसाद सेवा करानेका सौभाग्य प्राप्त होता था, जो आज तक चल रहा है।

जिस प्रकार श्रीमानमन्दिर-सेवा-संस्थान द्वारा व्रजकी अनेक लीला-स्थलियोंका जीर्णोद्धार एवं सौन्दर्यीकरण किया गया है, उसी प्रकार श्रीमहाराजजीने भी व्रजके अनेक स्थान जैसे जावट, भाण्डीरवन, उद्धवक्यारी, मानसी गंगा स्थित ब्रह्मकुण्ड, श्रीदुर्वासा मन्दिर आदि जो जीर्ण-शीर्ण हो रहे थे, उनको संरक्षित किया है।

श्रीमहाराजजीने गौड़ीय-सम्प्रदायके आचार-विचार-प्रचारका संरक्षण और संवर्धन किया है एवं वे अन्य सम्प्रदायोंको भी यथायोग्य सम्मान प्रदान करते थे। श्रीमहाराजजी समय आने पर सभीकी सहायता करनेको प्रस्तुत रहते थे। श्रीमहाराजजी वर्षमें दो-तीन बार धर्मसभा भी करते थे जिसमें व्रजके विद्वान पण्डितों एवं व्रजवासियोंको बुलाते थे और सभाका विषय राधातत्त्व, कृष्णतत्त्व या श्रीरूपगोस्वामीका अवदान होता था।

श्रील महाराजजीका व्रजके प्रति लगाव, व्रजवासियोंके प्रति प्रीति, विद्वता, व्रजरसरसिकता एवं मधुर व्यवहार देखकर व्रजके सभी विद्वानोंने मिलकर इनको ‘युगाचार्य’की उपाधिसे विभूषित किया है।

श्रीनारायण महाराज द्वारा श्रीराधामाधवकी मानलीलाका जो चित्रपट बनवाया गया था, वह चित्रपट श्रीबाबामहाराज सदैव अपने कक्षमें रखते हैं। ऐसे सन्त प्रवर श्रीनारायण महाराजजी वास्तवमें एक सद्गुरु थे, जो श्रीराधामाधवकी नित्यलीलामें जानेके पश्चात्‌ आज भी सभीके हृदयमें विराजमान हैं। श्रीबाबामहाराज भी उनका स्मरण करते रहते हैं।

हम श्रील महाराजजीसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे ऊपर सदैव कृपा वर्षण करते रहें।

राधाकान्त शास्त्री

कार्यकारी अध्यक्ष

श्रीमानमन्दिर सेवा संस्थान

बरसाना