Sri Purushottam Lal Chaturvedi
India, Mathura

श्रीभक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराजजीके जन्म-शताब्दी-महोत्सवके उपलक्ष्यमें श्रीगोपाल वैष्णव पीठ, मथुराके महन्त श्री108 श्रीपुरुषोत्तम लालजी महाराज द्वारा प्रदत्त पुष्पाञ्जलि
।। श्री गोपालो जयति ।।
पूज्य माध्व-गौडी़य श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की परम्परामें मथुरा श्रीकेशवजी गौडी़य मठके भूतपूर्व महन्त श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामीजी महाराजके जन्म-शताब्दी-महोत्सव – माघ कृष्ण मौनी-अमावस्याके दिन सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।
ऐसे महापुरुषोंका प्राकट्य भगवत् इच्छासे जगत् के कल्याणके किए ही होता है। किसी मठके पीठासीनके लिए सत्य, धर्म, न्याय, उदारता, श्रद्धा, ईष्ट की भक्ति एवं गुरुजनोंके प्रति विनम्रता, शरणागतिका भाव तथा जनसमुदायके प्रति समान दया, कल्याणकारी भाव होना परम आवश्यक है इसके अतिरिक्त स्वसम्प्रदायके सिद्धान्तोंके प्रति अनन्य निष्ठा और विश्वास होना भी परम आवश्यक है।
इन सभी सद्गुणोंका दर्शन श्रील नारायण गोस्वामी महाराजके व्यक्तित्व एंव कृतित्वमें देखनेको मिलता है। आप जबसे माध्व-श्रीचैतन्य-गौड़ीय-मतके ‘अचिन्त्यद्वैताद्वैत सिद्धान्त’ के अनुयायी बने, तबसे श्रीराधाकृष्ण युगलस्वरूपकी उपासनामें लगे रहे तथा 'कलौ केशव कीर्तनात्' के सिद्धान्तसे भगवन्नामके संकीर्तन––‘कीर्तनीय सदा हरिः’ का उपदेश करते रहे। आप साम्प्रदायिक ग्रन्थोंके अन्वेषण, प्रकाशन, टीका, पठन-पाठन, प्रचार-प्रसार सभी कार्योंमें सतत् प्रयत्नशील रहे तथा व्रजयात्राके प्रसङ्गसे भी सम्प्रदायके प्रचार-प्रसारमें लगे रहे। आपने अपने प्राकट्य कालमें श्रीकेशवजी गौडी़य मठका जीर्णोद्धार कराकर उसे नवीनता प्रदान की। अनेकों बार विद्वत् गोष्ठी आदि कराते रहे तथा ज्ञान-भक्तिका सम्पोषण करते हुए मठकी सेवा तथा जनकल्याण करते रहे। मेरा महाराजश्रीसे अच्छा सम्पर्क था। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व सुरक्षित है जिस कारण वे आज भी हम लोगोंके बीचमें विद्यमान हैं। उनके जन्म-शताब्दी-महोत्सवके पुण्य अवसर पर मैं उनको स्मरण करता हूँ।
-शुभेच्छु

पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदः
(मथुरा)
(अनन्तश्रीविभूषित श्रीमद्विष्णुस्वामि-मतानुयायिश्रीगोपाल वैष्णवपीठाधीश्वर)