Aishwarya Devidasi
India, Delhi

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
श्रीलपरमगुरुदेव, श्रील भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज के श्रीचरणोंमें पुष्पांजलि —
श्रीभगवान् और उनके अभिन्न प्रकाश विग्रह श्रीलपरमगुरुदेव—हम सबके नायक हैं। आप हमारा “राधा-दास्यम्” को प्राप्त करनेके लिये और “अपने शाश्वत घर” वापस जानेके लिये नेतृत्त्व कर रहे हैं।
न केवल आप हमारा नेतृत्त्व कर रहे हैं बल्कि आपके जीवन की छोटी से छोटी घटना भी हमारा मार्गदर्शन करती है।
आप ब्रजमण्डलके प्रमुख पण्डितोंके द्वारा “युगाचार्य” की उपाधि से विभूषित हुये हैंं, आपने देश के बड़े-बड़े महानगरों से लेकर छोटे-छोटे गाँवों और सुदूर वन्यों क्षेत्रों में ही नहीं अपितु पाश्चात्य देशवासियों के हृदय में भी उन्नत-उज्जवल-रस रूपी भक्ति का सुबीज रोपित किया है। आप अपने गुरुदेव की चरणसेवा में सुनिपुण हैं।
“अवश्य रक्षिबे कृष्ण” हम तो ऐसा पढ़ते हैं, लेकिन आपने अपने जीवनमें इसको चरितार्थ करके दिखाया। आपने न केवल अभिधेय बताया, बल्कि आपने इस कलि के युग में कृष्णसेवा करने, भक्तों का संग करने व प्रमुख रूपसे भक्तों की सेवा कैसे की जाती है उसके उच्च मापदण्ड व आदर्श स्थापित किये। आपकी भक्तोंके प्रति विशेष सेवावृत्ति को देखकर ही आपके गुरु महाराज ने आपको “भक्तबान्धव” उपाधि से अलंकृत किया है।
“शुश्रूषया भजन विज्ञम् अन्यम् अन्य-निन्दा-आदि शून्य हृदम् ईप्सित संग लब्धया”---आप हैं।
आप निपुण हैं--- न केवल भजन करने में---महाप्रभु की विरासत फैलाने में—नये लोगों को भक्ति से जोड़ने में----बल्कि विषम परिस्थितियों में कैसे भक्ति करनी चाहिये, कैसे कृष्ण सेवा करनी चाहिये। आप इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। ऐसे परमगुरुदेव की जय हो! आपकी और आपके शिष्यों की जय हो!
मेरी इतनी क्षमता नहीं कि मैं आपका गुणगान कर सकूँ। मैंने अपने आध्यात्मिक जीवन में गहन अपराध किये हैं। परन्तु आपके स्नेहपूर्ण और क्षमाशील व्यवहार के कारण ही मुझको भक्तों का संग मिला।
आप सदैव मुझ पर अपने स्नेह की वर्षा करते रहें। मेरी आपकी सेवा करने की तीव्र इच्छा हो। मैं दृढ़ निश्चय के साथ आपके शरणागत हो सकूँ।
ऐसी मेरी, आपके श्रीचरणों में करबद्ध प्रार्थना है।
आपकी सेवाकांक्षी
ऐश्वर्य देवीदासी (प्रशिष्या)
(श्रीलभक्तिवेदान्त माधव महाराज की शिष्या)